एकाग्रता बढाने के सरल उपाय

जैसा कि आप जानते है कि व्यक्तित्व विकास की इस श्रंखला में हम आपके लिए व्यक्तित्व विकास के लिए उत्तरदायी विभिन्न महत्त्व पूर्ण कारको का विवरण एवं उनके अभ्यास का सरल तरीका बताने का प्रयास करते है | पिछली बार हमने आत्मविश्लेषण के बारे में विस्तार से विमर्श किया था | जिसमे व्यक्तित्व विकास के लिए समय प्रबंधन की महत्ता एवं उसके लाभों से अवगत कराया था |
आज हम लोग “एकाग्रता” पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे | और आपको यह बताने का प्रयास करेंगे कि हमारे व्यक्तित्व विकास में एकाग्रता का क्या महत्त्व है ? एकाग्रता से क्या लाभ है? और एकाग्रता को प्राप्त करने के लिए हमें क्या क्या सरल उपाय करने चाहिए ?
आइये विमर्श शुरू करते हैं –
एकाग्रता को सामान्य रूप से हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि “अपने उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अन्य बातों पर ध्यान न लगाते ह्युए निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति तक प्रयास करना ही एकाग्रता है”| अथवा इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है ,कि अपने तप ,नियमबद्धता एवं अनुशासन से अभीष्ठ लक्ष्य को प्राप्त करने का एक मात्र मार्ग एकाग्रता है |
एकाग्रता की आवश्यकता –
जिस व्यक्ति के अन्दर एकाग्रता होती है उन व्यक्तियों को सफल होने से कोई रोक नहीं सकता |आपने ये देखा होगा की सफल व्यक्तियों का जीवन लक्ष्यों पर आधारित होते हैं | वह एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं | उसे प्राप्त करते हैं | पुनः नया लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने के लिए लग जाते हैं | इसी प्रकार एक के बाद एक लक्ष्य प्राप्त कर अपना नाम सफल व्यक्तियों की सूची में लिखवा लेते हैं | इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति में उस व्यक्ति ने अपनी एकाग्रता को कभी नही खोया | अपनी इसी एकाग्रता के कारण ही वह व्यक्ति सफल हो पाया |
इस विमर्श से आपको यह भली प्रकार ये समझ आ गया होगा कि हमारे जीवन में एकाग्रता का क्या लाभ और महत्त्व होता है ? तथा हमारी सफलताओं में एकाग्रता का क्या महत्त्व एवं योगदान होता है |
यह जरुरी नहीं है कि लक्ष्य बड़ा ही हो या विशेष ही हो अथवा लक्ष्य कुछ भी हो सकता है | असाधारण अथवा सामान्य भी हो सकता है | महत्त्व पूर्ण यह है कि हम लक्ष्य को लक्ष्य मानकर उस पर अग्रसर हों | प्रायः देखने में आता है कि हम लक्ष्य निर्धारित तो कर लेते हैं किन्तु एकाग्रता के आभाव में लक्ष्य से विमुख होकर नए लक्ष्य पर गति शील हो जाते हैं | और पुनः इस लक्ष्य को भी तिलांजलि देकर नया लक्ष्य बनाकर उस पर कार्य करने लगते हैं | इस प्रकार हम कभी भी एक लक्ष्य पर एकाग्र नहीं हो पाते हैं और असफल लोगों की सूची में अपना नाम सफलता पूर्वक लिखा लेते हैं |
एकाग्रता कैसे प्राप्त करें-

एकाग्रता प्राप्त करने के लिए हमें स्वयं को तैयार करना होता है | स्वामी राम कृष्ण परमहंस का कहना था कि जब तक हमारा मन चंचल और अस्थिर रहता है ,तब तक हमें श्रेष्ठ गुरु की ज्ञान की बातें भी कोई प्रभाव नहीं डाल पाती और न ही कोई सत्संग हमारे लिए कोई उचित मार्ग प्रशस्त कर पाता है | इसलिए एकाग्रता प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम हमें मन को स्थिर करने का प्रयास करना चाहिए |
क्या हे वो सामान्य प्रयास –
1.सम्पूर्ण दिन में खुद को शांत रखने का प्रयास करें | कोशिश करें की अच्छे शांत और सकारात्मक वातावरण में रहने का प्रयास करें | जिससे आपका हर काम में मन लगता रहे |
2.अनावश्यक और नकारात्मक विचारों को मन में न आने दें |
3.मन में चिंता , भय , शोक , तनाव के साथ किसी की बुराई न आने दें |
4.जो कार्य अप्कोकारने हैं उन्हें निश्चित और कम समय में पूरा करने का प्रयास करें |
5.एक समय पर एक कार्य में ही मंलागएं
6.समय पर आहार लें और पौष्टिक आहार को अपने भोजन में शामिल करें |
7.प्रसन्न रहने की कोशिश करें |
8.बचे हुए समय में अपनी सफलताओं में अपने सहयोगियों के सहयोग का समरण करे और उनके सहयोग के लिए तत्पर होने का संकल्प लें |
9.इसी कार्य शैली और दिनचर्या को अपना स्वभाव बना लें | इस प्रकार आप एकाग्रता को प्राप्त करने के अधिकारी बनाने लगते हैं |
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अब हमें मानसिक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है | मानसिक प्रशिक्षण से मेरा आशय मन को नियंत्रित करने के सतत अभ्यास से है | जिस प्रकार किसी भी शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें प्रशिक्षण की जरुरत होती हे | वैसे ही मन को नियंत्रित करने के लिए प्रशिक्षण की जरूरत होती है | और इसके लिए भी किसी अन्य ज्ञान के प्रशिक्षण की भांति निश्चित समय पर ही प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए | इस प्रशिक्षण के लिए प्रातः काल का समय उत्तम माना गया है |
योग और ध्यान साधना में इसे आसानी से समझा जा सकता है कि मन का सीधा सम्बन्ध हमारी सांसों से होता है | यदि मन चंचल है तो सांसे भी चंचल होती ही हैं | सांसों के नियंत्रण से मन को नियंत्रित किया जा सकता है | इस नियंत्रण के लिए हमें अनुलोम – विलोम तथा प्राणायाम का सहारा लेना चाहिए | जोकि एक सिद्ध और वैज्ञानिक विधि है | प्रारंभ में प्राणायाम का समय कम और धीरे – धीरे बढ़ाते जाना चाहिए | इस प्रकार प्राणायाम के अभ्यास से हम अपनी सांसों को नियंत्रित कर स्वाभाविक ही मन को नियंत्रित कर लेते हैं | किन्तु इस अभ्यास में निरंतरता की जरुरत होती है |
सम्पूर्ण विमर्श से आप समझ चुके होंगे कि कुछ प्रयासों से हम “एकाग्रता”को प्राप्त कर सकते हैं | एकाग्रता से लक्ष्य में सफलता और इस सफलता से स्वप्रेरणा और स्वप्रेरणा से आत्मविश्वास प्राप्त होता है | यही आत्मविश्वास हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए प्रभावी कारक होता है और हमें भीड़ से अलग कर करता है |
आज का विमर्श को यहीं पर विराम देते हुए आशा करता हूँ कि आपको एकाग्रता के बारे में तथा उसके प्रत्येक पक्ष की जानकारी सरल भाषा में समझ आ गयी होगी | व्यक्तित्व विकास में सहायक महत्वपूर्ण कारको के साथ अगले एपिसोड में मिलेंगे | तब तक आप एकाग्रता के लिए अभ्यास करने का प्रयास करें |
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