जानें ! महाराज मनु कौन थे ?

सनातन धर्म के अनुसार मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था | जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये ‘स्वयं भू’ (अर्थात स्वयं उत्पन्न ; बिना माता-पिता के उत्पन्न) होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई।

मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव (=मनु से उत्पन्न) भी कहा जाता है।

ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं।

मनुओं की संख्या – हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर क्रमश: १४ मनु हुए। महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है।

चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार से हैं -स्वयंभुव मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तामस मनु या तापस मनु ,रैवत मनु, चाक्षुषी मनु, वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु (वर्तमान मनु), सावर्णि मनु ,दक्ष सावर्णि मनु ,ब्रह्म सावर्णि मनु ,धर्म सावर्णि मनु ,रुद्र सावर्णि मनु ,देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु, इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु ,वर्तमान काल तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं | अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५६३5 वर्ष पूर्व हुआ था।

सन्तानें – स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें हुईं थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे।

कन्याएं – आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।

पुत्र – मनु के दो पुत्रों प्रियव्रत और उत्तानपाद में से बड़े पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर ब्रह्माण्ड में ऊंचा स्थान पाया।