बंगाल का पुनः जागरण और उत्थान

भारत में कुछ काल तक मुग़ल और राजस्थानी शैलियाँ रहीं जो 18 सदी तक समाप्त हो गयी | कुछ चित्रकार भारत के विभिन्न भागों में फ़ैल गए | उन्होंने अपनी अलग शैलियों का विकास किया जैसा पटना शैली आदि |
विभिन्न शैलियों का विकास
भारत में कुछ काल तक मुग़ल और राजस्थानी शैलियाँ रहीं जो 18 सदी तक समाप्त हो गयी | कुछ चित्रकार भारत के विभिन्न भागों में फ़ैल गए | उन्होंने अपनी अलग शैलियों का विकास किया जैसा पटना शैली आदि |
प्रो. ई बी हेवेल का योगदान
इसी समय मुंबई व् कोलकाता में कला शिक्षण के लिए विद्यालय स्थापित किये गए जिनमे मुख्यतः पाश्चात्य कला का शिक्षण होता था | कला अध्यापकों का अब तक यह विचार था कि पूर्व की कला के सिद्धांत अच्छे है इन्हें पदाधिकारियों में प्रो. ई बी हेवेल भी एक थे | प्रोफेसर ईरेस्ट बेन्फील्ड हेबेल इन्होने ने भारतीय कला का पूर्ण अध्ययन किया |
बंगाल स्कूल का प्रारंभ
तत्पश्चात भारतीय कला सिद्धांतों को पाश्चात्य की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ माना | हेबेल १८८४ में मद्रास कला विद्यालय के प्राचार्य नियुक्त किये गए | जब भारतीय जनमानस का रुझान भारतीय कला की और होने लगा | तब हेबेल कलकत्ता कला स्कूल के प्राचार्य नियुक्त किये गए | इनके सहयोग से बंगाल में कला का एक नया सूत्रपात हुआ | हेबल ने बंगाली छात्रों को पाश्चात्य कला सिद्धांतों के आधार पर कला सिखाने की गुत्थियों को समझा और इन्होने अपने छात्रों का ध्यान मुगल और राजपूत कला की और आकृष्ट किया |
प्रो. ई बी हेवेल का विरोध
किन्तु चूँकि वे अँगरेज़ थे |अत: उनका भारतीय कला प्रेम रहस्मय माना गया | फलतः इसका विरोध प्रारंभ हो गया उनके सतत प्रयासों से यह विरोध कम होने लगा | संयोग से हेबल की भेंट अवनीन्द्रनाथ टैगोरे से हुई हेवल ने उन्हें भारतीय कला कक्षाओं का अध्यक्ष बना दिया | यहाँ हेवल की देख रेख में अवनींद्र ने भारतीय शैली में कई प्रयोग किये |
राजा रवि वर्मा का कला के विकास का प्रयास
राजा रवि वर्मा के कला विकास सम्बन्धी आन्दोलन के बाद आधुनिक चित्रकला के नवीन युग का सूत्रपात हुआ | उसके प्रवर्तकों में अवनीन्द्रनाथ , हेवल , आनंद कुमारस्वामी तथा रामानंद चटर्जी का नाम लिया जाता है | आधुनिक चित्रकला के जन्म की यह कहानी बंगाल स्कूल के उपरोक्त आन्दोलन से प्रारंभ हो भारतीय स्वतंत्रता के साथ समाप्त हो गयी |
अवनींद्रनाथ का योगदान
इस पुनः जागरण और कला के उत्थान के आन्दोलन को अग्रसर करने में अवनींद्रनाथ का नाम एक चित्रकार के रूप में ही नहीं वरन एक शिक्षक एवं प्रचारक के रूप में भी लिया जाता है | अवनीन्द्रनाथ एवं हेवल ने अपने प्रयासों से कला विद्यार्थियों का एक दल बना लिया था | जिसके प्रमुख सुरेन्द्र गांगुली एस .एन. गुप्ता, नन्दलाल बसु, शैलेन्द्र, विरेश सेन इत्यादि थे | इस नवीन स्कूल को ओरिएण्टल आर्ट सोसाइटी जिसकी स्थापना गगनेन्द्रनाथ टैगोरे ने की थी ने बहुत प्रोत्साहित किया था |
बंगाल स्कूल का कला जागरण
बंगाल से इस प्रकार एक नवीन कला जागरण की लहर तो फैली किन्तु कदाचित इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी कि आगामी वर्षों में इसका विस्तार होगा | इस नवीन जागरण के साथ चित्रकला में नितांत भारतीयता पर बल दिया जाने लगा जो सदैव ही आलोचना का विषय रहा | ज्यो ज्यो भारत के कला विद्यालयों की स्थापना होती गयी वैसे वैसे कला शिक्षकों की मांग बढती गयी | और इस स्कूल का प्रसार होता गया | अंग्रेजी सरकार ने भी इस आन्दोलन को खूब संरक्षण और प्रोत्स्साहन दिया | अंग्रेजी सरकार ने बंगाल स्कूल के शिक्षकों को अन्य स्कूलों का शिक्षक या प्राचार्य नियुक्त किया | ये शिक्षक जिस क्षेत्र में गए उस क्षेत्र में अपना कार्य करके इस स्कूल का प्रसार करते गए |
कुछ समय बाद यहाँ की कला एक सीमा में जकड़ने लगी बंगाल स्कूलों के जो चित्रकार अन्य स्कूलों में गए उनमे नंदलाल बसु ने शांतिनिकेतन, असित कुमार हालदार ने लखनऊ , तथा सोमेन्द्र नाथ ने लाहौर स्कूल ऑफ़ आर्ट का अध्यक्ष पद ग्रहण किया | इन चित्रकारों ने अलग प्रान्तों में जाकर कला जाग्रति को अग्रसर करने का प्रयास किया |
बंगाल कला आन्दोलन के पतन का कारण
किन्तु बंगाल स्कूल की निर्बलताओं तथा समय की परिवर्तन शीलता के कारण यह स्कूल अधिक समय तक जीवित न रह सका और तीसरी संतति के आते आते समाप्त हो गया | अवनीन्द्रनाथ टैगोर को अपने स्वर्गवास से पूर्व १९५१ की इस आन्दोलन की दुर्दशा भी देखनी पड़ी |
इस आन्दोलन के पतन का कारण यहाँ के कलाकारों का कल्पना को अत्यधिक महत्व देना और यथार्थ से दूरी थी | हालाँकि यह स्वाभाविक ही था कि इनकी कलाकृतियों में कल्पना के आधिक्य के कारण विकृतियाँ आने लगी | अनुपात हीन बड़े बड़े नेत्र पतली लम्बी उँगलियाँ आदि | इस प्रकार शीघ्र ही रूढ़ी व् ह्रास के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देने लगे और ये कला शैली एक चौथाई सदी के पश्चात ही दम तोड़ने लगी और भारतीय कला में यूरोप संपर्क के फल स्वरुप नवीन प्रवृत्तियाँ विकसित होने लगी |
आधुनिक कलकारों की कला समालोचना
डॉक्टर आनंद कुमारस्वामी ने बंगाल के आधुनिक कलकारों की कला समालोचना करते हुए कहा की कलकत्ता के भारतीय चित्रकारों केआधुनिक स्कूल का कार्य राष्ट्रीय पुनः जागृति का एक पक्ष है, जबकि 19 वी सदी के समाज सुधारको की यह इच्छा थी कि भारत को इंग्लैंड बना दें | तब बाद के कार्यकर्ता समाज में एक ऐसी आस्था वापस लाने का प्रयत्न कर रहे थे जिससे भारतीय संस्कृति में अभिव्यक्ति और लागू आदर्शों का गहराई से मनन किया जा सके |
स्वतंत्रता आन्दोलन
आनंद कुमारस्वामी ने इस स्कूल की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि यद्यपि श्री टैगोर एवं अन्य शिष्यों ने भव्य शैली को पुर्णतःस्वीकार नहीं किया परन्तु निश्चित ही उन्होंने भारतीय आत्मा को पुनर्जीवित किया है | और इसके अतिरिरिक्त जैसे ही प्रत्येक कलकार की जिज्ञासा होती है कि उसकी कृति में भिन्न प्रकार का सौंदर्य हो यह भावना इनके चित्रों में भी दृष्टिगोचर होती है |
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२०वी सदी के साथ ही स्वतंत्रता आन्दोलनों के बीज भी पनपने लगे थे और सम्पूर्ण देश में स्वदेश प्रेम और मातृशक्ति के साथ वन्देमातरम् की ध्वनि प्रतिध्वनित होने लगी थी | इस भावना का प्रभाव बंगाल स्कूल के कला आन्दोलनो पर भी पड़ा | चित्रकार भी देश प्रेम और स्वतंत्रता की भावना से परिपूरित हो गये थे |
वाश तकनीक का विकास
बंगाल स्कूल के कलाकृति में भी विदेशी कला प्रभाव के रूप में जापानी वश पद्धति के अतिरिक्त पाश्चात्य शैली का यथार्थ रेखांकन और आलेखन का निश्चित रूप से सम्मिश्रण है | वैसे इस स्कूल की कलाकृतियों में यथार्थ परिमार्जन रंगों की कोमलता और भारतीय वस्तुओं के प्रति प्रेम परिलक्षित होता है | डॉक्टर आनंद कुमारस्वामी के अनुसार इस स्कूल की कृतियाँ अजंता, मुग़ल तथा राजपूत चित्रों से प्रेरणा लेकर भी निर्बल है |
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