समाज के लिए नारी की जरुरत

हमारे समाज में महिला अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है। अपनी सभी भूमिकाओं में निपुणता दर्शाने के बावजूद आज के आधुनिक युग में महिला पुरुष से पीछे खड़ी दिखाई देती है। पुरुष प्रधान समाज में महिला की योग्यता को आदमी से कम देखा जाता है। महिला को अपनी जिंदगी का ख्याल तो रखना ही पड़ता है साथ में पूरे परिवार का ध्यान भी रखना पड़ता है। वह पूरी जिंदगी बेटी, बहन, पत्नी, माँ, सास, और दादी जैसे रिश्तों को ईमानदारी से निभाती है।

अगर हम महिलाओं की आज की अवस्था को पौराणिक समाज की स्थिति से तुलना करे तो यह तो साफ़ दिखता है की हालात में कुछ तो सुधार हुआ है। महिलाएं नौकरी करने लगी है। घर के खर्चों में योगदान देने लगी है। कई क्षेत्रों में तो महिला पुरुषों से आगे निकल गई है। दिन प्रतिदिन लड़कियां ऐसे ऐसे कीर्तिमान बना रही है जिस पर न सिर्फ परिवार या समाज को बल्कि पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है। आज अगर महिलाओं की स्थिति की तुलना सैकड़ों साल पहले के हालात से की जाए तो यही दिखता है महिलायें पहले से कहीं ज्यादा तेज गति से अपने सपने पूरे कर रही है।

महिलाओं के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती

इसे पागलपन ही कहा जाएगा की उनकी प्रतिभा को सिर्फ इसी तर्क पर नज़रअंदाज कर दिया जाए कि वे मर्द से कम ताकतवर तथा कम गुणवान है। भारत की लगभग आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है।

अगर उनकी क्षमता पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका साफ़ साफ़ मतलब है देश की आधी जनसँख्या अशिक्षित रह जाएगी और अगर महिलाएं ही पढ़ी लिखी नहीं होगी तो वह देश कभी प्रगति नहीं कर पाएगा। हमें यह बात समझनी होगी की अगर एक महिला अनपढ़ होते हुए भी घर इतना अच्छा संभाल लेती है तो पढ़ी लिखी महिला समाज और देश को कितनी अच्छी तरह से संभाल लेगी।

नारी की समाज में भूमिका

हमने आज तक महिला को बहन, माँ, पत्नी, बेटी आदि विभिन्न रूपों में देखा है जो हर वक़्त परिवार के मान सम्मान को बढ़ने के लिए तैयार रहती है। शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी हालात इतने ख़राब नहीं है पर ग्रामीण इलाकों में महिला की स्थिति चिन्ता करने योग्य है।

सही शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण महिलाओं की दशा दयनीय हो गई है। एक औरत बच्चे को जन्म देती है और पूरी जिंदगी उस बच्चे के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियों को निभाती है। बदले में वह कुछ भी नही मांगती है और पूरी सहनशीलता के साथ बिना तर्क किये अपनी भूमिका को पूरा करती है।

महिलायें समाज के विकास एवं तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उनके बिना विकसित तथा समृद्ध समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रिघम यंग के द्वारा एक प्रसिद्ध कहावत है की ‘अगर आप एक आदमी को शिक्षित कर रहे है तो आप सिर्फ एक आदमी को शिक्षित कर रहे है पर अगर आप एक महिला को शिक्षित कर रहे है तो आप आने वाली पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर रहे है’।

समाज के विकास के लिए यह बेहद जरुरी है की लड़कियों को शिक्षा में किसी तरह की कमी न आने दे क्योंकि उन्हें ही आने वाले समय में लड़कों के साथ समाज को एक नई दिशा देनी है। ब्रिघम यंग की बात को अगर सच माना जाए तो उस हिसाब से अगर कोई आदमी शिक्षित होगा तो वह सिर्फ अपना विकास कर पायेगा पर वहीं अगर कोई महिला सही शिक्षा हासिल करती है तो वह अपने साथ साथ पूरे समाज को बदलने की ताकत रखती है।

महिलाओं के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इसे पागलपन ही कहा जाएगा की उनकी प्रतिभा को सिर्फ इसी तर्क पर नज़रअंदाज कर दिया जाए कि वे मर्द से कम ताकतवर तथा कम गुणवान है। भारत की लगभग आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। अगर उनकी क्षमता पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका साफ़ साफ़ मतलब है देश की आधी जनसँख्या अशिक्षित रह जाएगी | अगर महिलाएं ही पढ़ी लिखी नहीं होगी तो वह देश कभी प्रगति नहीं कर पाएगा। हमें यह बात समझनी होगी की अगर एक महिला अनपढ़ होते हुए भी घर इतना अच्छा संभाल लेती है तो पढ़ी लिखी महिला समाज और देश को कितनी अच्छी तरह से संभाल लेगी।

महिलाएं परिवार बनाती है

परिवार घर बनाता है, घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है। इसका सीधा सीधा अर्थ यही है की महिला का योगदान हर जगह है। महिला की क्षमता को नज़रअंदाज करके समाज की कल्पना करना व्यर्थ है। शिक्षा और महिला ससक्तिकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं हो सकता। महिला यह जानती है की उसे कब और किस तरह से मुसीबतों से निपटना है। जरुरत है तो बस उसके सपनों को आजादी देने की।

घर-परिवार एवं समाज में हर व्यक्ति के अपने-अपने कर्तव्य व अधिकार हैं जिनका निर्वहन वह करते रहते हैं। यह आवश्यक नहीं कि हर व्यक्ति एक दूसरे के बराबर योग्यता, कार्य कुशलता, दक्षता आदि रखता हो। व्यक्तिगत विभिन्नता का गुण पूरी दुनिया में व्याप्त है। इसलिए मनुष्यों में विभिन्न प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती हैं।

इस कड़ी में पुरुष एवं महिला प्रत्येक का अपना-अपना उत्तर दायित्व है जिसका निर्वहन उनको करना पड़ता है। हमारी भारतीय संस्कृति में पुरुषों की प्रधानता की बात कही गई है। हालांकि प्राचीन काल में भी चंद महिलाएं ही पुरुषों के बराबर या आगे रहीं। आज भी कुछ महिलाएं ही विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही हैं। सैनिक के रूप में भी महिलाओं ने काम करना शुरू कर दिया है लेकिन वहां भी दुरुह स्थानों या सीमावर्ती इलाकों में पुरुष सैनिकों को ही ज्यादातर उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। ऐसा मानकर चला जाता है कि पुरुष विकट परिस्थितियों में भी अपने को समायोजित कर लेते हैं।